रावण दहन विजयदशमी का पर्याय बन गया है रावण दहन मगर होता नहीं कभी-कभी मुझे ये तथ्य सहन सदियों की परंपरा तो हम प्रतिवर्ष निभाते हैं बड़े उत्साह और जोश से रावण जलाते हैं मगर खुद के अंदर बैठा है जो रावण उसे प्रतिक्षण प्रतिपल और उर्वर बनाते हैं अपने दायित्वों का भी हम कहां करते हैं पूर्णता निर्वाहन वो जो कलयुग का रावण था अहंकार था अगर उसमें तो संयम भी कम न था न छू सकता था जानकी को ऐसा नही, उसमें इतना दम न था उसे तो श्री राम के हाथों थी मुक्ति कीअभिलाषा, इसी के वास्ते किया था सीता हरन ये जो कलयुग का रावण है न संयम है ना मर्यादा भ्रष्ट है बुद्धि से हवस की भूख है ज्यादा ये तो रक्तबीज की भांति पगपग पर पनपे हैं , उठो जागो करो उद्धार हे! राम धरा पर फिर अवतरित हो कि नन्हीं मासूमों का दर्द अब होता नहीं सहन आओ विजयदशमी की नई पार्टी परिपाटी चलाएं त्याग कर अब गुणों को बस रावण के गुणों को अपनाएं आज के दिन कर दे अपनी सारी बुराइयों का हवन इस तरह से करें हम विजयदशमी पर रावण दहन #रावण दहन