37 हर्षोत्फुल्ल हुई अवंतिका तब भाँपकर सन्निकट पुनर्मिलन की बेला, प्रतिवेदन में पद्मावती जब बोली,सखी प्रत्यागत को आये बंधु अकेला। पलभर को विष्मित भयी श्रवणकर अमात्य-राजन संवाद, छनभर में हीं छँटा अँधेरा रहस्योद्घाटन पर स्वतः निर्विवाद। क्षमायाचना करते थे एक-दूजे से यद्यपि सारे निरपराध, पूज्यनीया को सखी बोली कहती थी पद्मावती, मेरा अक्षम्य अपराध। निःशेष हूई विरह वेदना बहकर नयनों से नीर, तत्पश्चात चले सर्व सज्जन वत्स राज्य को धर गंगा के तीर। सादर आमंत्रित सर्वजन यहाँ करने को सुधार, जोड़-तोड़ सलाह सहीत सर्व विचार स्वीकार। 🌸🙏🌸 ©RAVINANDAN Tiwari #स्वप्नवासवदत्ता Harlal Mahato Antima Jain Pushpvritiya