विश्वास की चमक नफरत के आगे फिका न हो जाये वृंदावन में हूं आ जाओ राधा बन तुम कहीं ये वियोग इस मनचले आशिक को शायर न बना जाये उस अतुल्यनीय विश्वास की कमजोर कढ़ी न हो जाये , आ जाओ अब मेरे कान्हा कही एक और घड़ी यूँ ही व्यथा व्यतीत न हो जाये।। इस हृदय में शेष जो ममत्व है कही व्यर्थ व्यथा मे न बह जाये, आ जाओ अब मेरे कान्हा कही एक घड़ी यूँ ही व्यर्थ व्यतीत न हो जाये।। हर क्षण में ये प्रलाप है मन साफ़ है दिल साफ़ है अब अन्याय कही न हो जाये, आ जाओ अब मेरे कान्हा कही एक और घड़ी यूँ ही व्यथा व्यतीत न हो जाये।।