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परमात्मा चेतन स्वरूप अविनाशी अनंत अपार अंजाम और सग

परमात्मा चेतन स्वरूप अविनाशी अनंत अपार अंजाम और सगुण परम तत्व को अनुभव कीजिए यहां ना ध्यान में आएगा ना मन मस्ती में स्पष्ट करेगा यह ना योग से है ना बहुत से प्रकट हो सकता है मानव शरीर ऐसा पैथिक है जिसके लक्ष्य आत्मानुभूति से आत्मा में समस्त इंद्रियों को नियोजित करना है और आत्मा में परम तत्व को अनूप करना है आकाश पाताल लोक परलोक में परमात्मा नहीं है परमात्मा तो हमारे आत्मा में निवास करता है चिंतन मनन से बुद्धि जनित परिकल्प का शुद्धिकरण हो सकता है और ध्यान द्वारा मन और चित्र को शांत करने का प्रयोजन भी इसलिए शरीर को आत्मा अनमोल समझे मानव शरीर के अंदर रोग नहीं है लोग तो इस रोग को बाहर से ग्रहण कर लेते हैं और रोग को धारण ना करें तो निरोगी काया इस प्रकृति की देन है शक्ति का संकल्प है शरीर में व्याप्त इस चेतना जो आत्मा से उड़ती है को हमारे नियंत्रण भव करना होगा शरीर को आत्म अनुभव करना ही यह जीवन का मंत्र है जब सभी इस अनुभव नहीं करेगा तो अनर्थ होगा यही संबंध तो बनाना है शरीर और आत्मा के बीच आप खुद से पूछिए कि क्या यह शरीर आत्मा रूपी है या फिर आत्मा शरीर रूपी है यदि इसका उत्तर जीवन में मिल जाए तो पार तक की यात्रा आरंभ हो कुछ लोग शरीर को महत्वपूर्ण मानते हैं आत्मा को नहीं आत्मा को ना मानने वाले प्रेयर यह कहते हैं कि आत्मा का अस्तित्व ही है नहीं है ही नहीं कुछ लोग आत्मा को शरीर समझते हैं शरीर को नहीं लेकिन बड़ी संख्या में लोग आत्मा और शरीर को मानते तो है जानते बिल्कुल नहीं शरीर में व्याप्त परमात्मा को अनुभव करने वाला शरीर निरोग सुख-दुख और संपाद से मौत हो जाता है रुक उस भयभीत नहीं कर सकते महा संकट उसे पराजित नहीं कर सकते महामारी स्पष्ट नहीं कर सकती स्पर्श करें यह तो भी कोई हानि नहीं है क्योंकि शरीर धारी आत्मा पर परमात्मा का पर्व कब है तो आइए पल पल उस परमात्मा का अनुभव

©Ek villain #Prmatma 

#ganesha
परमात्मा चेतन स्वरूप अविनाशी अनंत अपार अंजाम और सगुण परम तत्व को अनुभव कीजिए यहां ना ध्यान में आएगा ना मन मस्ती में स्पष्ट करेगा यह ना योग से है ना बहुत से प्रकट हो सकता है मानव शरीर ऐसा पैथिक है जिसके लक्ष्य आत्मानुभूति से आत्मा में समस्त इंद्रियों को नियोजित करना है और आत्मा में परम तत्व को अनूप करना है आकाश पाताल लोक परलोक में परमात्मा नहीं है परमात्मा तो हमारे आत्मा में निवास करता है चिंतन मनन से बुद्धि जनित परिकल्प का शुद्धिकरण हो सकता है और ध्यान द्वारा मन और चित्र को शांत करने का प्रयोजन भी इसलिए शरीर को आत्मा अनमोल समझे मानव शरीर के अंदर रोग नहीं है लोग तो इस रोग को बाहर से ग्रहण कर लेते हैं और रोग को धारण ना करें तो निरोगी काया इस प्रकृति की देन है शक्ति का संकल्प है शरीर में व्याप्त इस चेतना जो आत्मा से उड़ती है को हमारे नियंत्रण भव करना होगा शरीर को आत्म अनुभव करना ही यह जीवन का मंत्र है जब सभी इस अनुभव नहीं करेगा तो अनर्थ होगा यही संबंध तो बनाना है शरीर और आत्मा के बीच आप खुद से पूछिए कि क्या यह शरीर आत्मा रूपी है या फिर आत्मा शरीर रूपी है यदि इसका उत्तर जीवन में मिल जाए तो पार तक की यात्रा आरंभ हो कुछ लोग शरीर को महत्वपूर्ण मानते हैं आत्मा को नहीं आत्मा को ना मानने वाले प्रेयर यह कहते हैं कि आत्मा का अस्तित्व ही है नहीं है ही नहीं कुछ लोग आत्मा को शरीर समझते हैं शरीर को नहीं लेकिन बड़ी संख्या में लोग आत्मा और शरीर को मानते तो है जानते बिल्कुल नहीं शरीर में व्याप्त परमात्मा को अनुभव करने वाला शरीर निरोग सुख-दुख और संपाद से मौत हो जाता है रुक उस भयभीत नहीं कर सकते महा संकट उसे पराजित नहीं कर सकते महामारी स्पष्ट नहीं कर सकती स्पर्श करें यह तो भी कोई हानि नहीं है क्योंकि शरीर धारी आत्मा पर परमात्मा का पर्व कब है तो आइए पल पल उस परमात्मा का अनुभव

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