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पतलकार भाग - 1 कुछ कडवी बातें होंगी,मुँह मे शहद

पतलकार

भाग - 1

कुछ कडवी बातें होंगी,मुँह मे शहद बनाए रखें । 1. कोई रबिश कुमार यह नहीं पुछेगा ममता बैनर्जी से कि "जय श्री राम" का नारा अपमान जनक कैसे हुआ ? करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का अपमान नहीं दिखा किसी भी पतलकार को ? सिर्फ सोचिए कि अगर यह नारा "अल्लाह हु अकबर" या "हेल जिसस" का होता और ममता बनर्जी की जगह नरेंद्र मोदी होते तो खुद को पवित्र पतलकार समझने वाले रबिश कुमार अपना मुँह काला करके छाती पीट रहे होते ।  यह कैसा सेक्युलरिज्म है जो सिर्फ एक नजर से देखता है,यह कैसे होता है ? किसको नहीं पता आप किन लोगों के बीच बैठते है,वो लोग जो आर्मी को रेपिस्ट बोलते है,जो   एक धर्म विशेष को गाली देते है,और यह जो चोला पहन कर समझदार बनने का दिखावा करते है इनकी पोल कुछ दिनों मे सोश्यल मीडिया पे खुल जाती है लेकिन दुख होता है कि जो लोग सिर्फ टीवी देखते है वो वही बात मान लेते है और सच उन तक बाद मे पहुंच नहीं पाता ।

2. वो बरखा दत्त जो 2002 दंगों मे सिर्फ एक पक्ष को दिखाकर यह बताना भूल गई कि ट्रेन में किसको जिंदा जलाया गया,ठीक है मै यह भी समझ सकता हूँ कि पत्रकार का समाज की तरफ फर्ज होता है कि वो एसी बातों को सार्वजनिक ना करे ताकि समाज मे नफरत ना बडे और दंगे ना भडके ... लेकिन लेकिन लेकिन यह कैसे संभव हुआ कि आपने सिर्फ एक पक्ष की बात रखी,मतलब आपने सिर्फ उसी पक्ष को पिडित कह दिया और दुसरे पक्ष का एक भी पक्षकार नहीं रखा,क्यों? मतलब 700 से ज्यादा जहाँ लोगो की दंगे मे हत्या हुई,आपको उनमे से एक इंसान नहीं मिला बताने के लिए? एसा हो सकता है? एसी हरकते आपने कश्मीर मे आतंकियों को अध्यापक का बेटा,कवी ,समाज सेवक के रुप मे दिखाया,यह क्या था? और वहीं दूसरी और आपने कश्मीरी पंडित नरसंहार पे यह बोल के पल्ला झाड लिया कि "कश्मीरी पंडित तो बाहर के है और "Elite" है तो इसलिए वहाँ के लोकल लोगो ने उनहें मार के भगा दिया" । वाह बरखा जी वाह ! यह क्या है ? और कौन से कश्मीरी पंडित के हाथ मे तलवार,बंदूक दिखी?  दिखा आपको कोई जिसने अमर ज्योति को लात मार के गिरा दिया हो ? अरे कश्मीरी पंडित तो आपको यह कहानी भी नहीं दे पाए कि इस कश्मीरी पंडित आतंकी के पिता जी कोई शिक्षक थे । बरखा जी,यह दोगलापन आपने क्यों दिखाया अपनी पतलकारिता मे? और किसके लिए? इसलिए क्योंकि मरने वाला एक धर्म विशेष का था? या इसलिए क्योंकि मारने वाला दूसरे धर्म विशेष का था?

3. अर्नब गोस्वामी,मतलब इन्होनें जो मजाक बनाया पत्रकारों का,इतना तो खैर रबिश और राजदीप मिलके नहीं कर पाते । अगर आपको एक पार्टी की सिर्फ दलाली ही करनी थी तो अपने चैनल का नाम रिपब्लिक क्यों रखा? अपने चैनल के नाम को ही जस्टिफाई कर देते.. जब तक ईमानदार हुआ करते थे बहुत नाम कमाया लेकिन फिर इन्होंने सोचा कि लोगों की भावनाओं को उकसा कर फायदा लिया जा सकता है । पालघर का मुद्दा आपने उठाया जो बैठकर शांति से किया जा सकता था लेकिन आप तो खुद बताने लग गए कि कभी कोई साजिश है,कभी महाराष्ट्र सरकार है इसके पीछे , तो आपने साधुओं की आत्मा का भी मजाक बनाया, हर बार कातिल बदल बदल के आपने सुशांत सिंह की आत्मा का मजाक बनाया तो आपने पत्रकारिता के नाम पे सिर्फ लोगों की भावनाओं के साथ खेला,आप उस शिखर पे थे कि वाकई उस वर्ग की पिडा को एक सभ्य तरिके से पेश करते ताकि लोग आपको तमाशा समझ कर नहीं एक साथ मिल कर समझते कि कैसे सेक्युलरिज्म के नाम पे एक वर्ग के साथ गलत किया जा रहा है , लेकिन आपने राष्ट्रभक्ति का मजाक बनाया । 

.... to be continued
पतलकार

भाग - 1

कुछ कडवी बातें होंगी,मुँह मे शहद बनाए रखें । 1. कोई रबिश कुमार यह नहीं पुछेगा ममता बैनर्जी से कि "जय श्री राम" का नारा अपमान जनक कैसे हुआ ? करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का अपमान नहीं दिखा किसी भी पतलकार को ? सिर्फ सोचिए कि अगर यह नारा "अल्लाह हु अकबर" या "हेल जिसस" का होता और ममता बनर्जी की जगह नरेंद्र मोदी होते तो खुद को पवित्र पतलकार समझने वाले रबिश कुमार अपना मुँह काला करके छाती पीट रहे होते ।  यह कैसा सेक्युलरिज्म है जो सिर्फ एक नजर से देखता है,यह कैसे होता है ? किसको नहीं पता आप किन लोगों के बीच बैठते है,वो लोग जो आर्मी को रेपिस्ट बोलते है,जो   एक धर्म विशेष को गाली देते है,और यह जो चोला पहन कर समझदार बनने का दिखावा करते है इनकी पोल कुछ दिनों मे सोश्यल मीडिया पे खुल जाती है लेकिन दुख होता है कि जो लोग सिर्फ टीवी देखते है वो वही बात मान लेते है और सच उन तक बाद मे पहुंच नहीं पाता ।

2. वो बरखा दत्त जो 2002 दंगों मे सिर्फ एक पक्ष को दिखाकर यह बताना भूल गई कि ट्रेन में किसको जिंदा जलाया गया,ठीक है मै यह भी समझ सकता हूँ कि पत्रकार का समाज की तरफ फर्ज होता है कि वो एसी बातों को सार्वजनिक ना करे ताकि समाज मे नफरत ना बडे और दंगे ना भडके ... लेकिन लेकिन लेकिन यह कैसे संभव हुआ कि आपने सिर्फ एक पक्ष की बात रखी,मतलब आपने सिर्फ उसी पक्ष को पिडित कह दिया और दुसरे पक्ष का एक भी पक्षकार नहीं रखा,क्यों? मतलब 700 से ज्यादा जहाँ लोगो की दंगे मे हत्या हुई,आपको उनमे से एक इंसान नहीं मिला बताने के लिए? एसा हो सकता है? एसी हरकते आपने कश्मीर मे आतंकियों को अध्यापक का बेटा,कवी ,समाज सेवक के रुप मे दिखाया,यह क्या था? और वहीं दूसरी और आपने कश्मीरी पंडित नरसंहार पे यह बोल के पल्ला झाड लिया कि "कश्मीरी पंडित तो बाहर के है और "Elite" है तो इसलिए वहाँ के लोकल लोगो ने उनहें मार के भगा दिया" । वाह बरखा जी वाह ! यह क्या है ? और कौन से कश्मीरी पंडित के हाथ मे तलवार,बंदूक दिखी?  दिखा आपको कोई जिसने अमर ज्योति को लात मार के गिरा दिया हो ? अरे कश्मीरी पंडित तो आपको यह कहानी भी नहीं दे पाए कि इस कश्मीरी पंडित आतंकी के पिता जी कोई शिक्षक थे । बरखा जी,यह दोगलापन आपने क्यों दिखाया अपनी पतलकारिता मे? और किसके लिए? इसलिए क्योंकि मरने वाला एक धर्म विशेष का था? या इसलिए क्योंकि मारने वाला दूसरे धर्म विशेष का था?

3. अर्नब गोस्वामी,मतलब इन्होनें जो मजाक बनाया पत्रकारों का,इतना तो खैर रबिश और राजदीप मिलके नहीं कर पाते । अगर आपको एक पार्टी की सिर्फ दलाली ही करनी थी तो अपने चैनल का नाम रिपब्लिक क्यों रखा? अपने चैनल के नाम को ही जस्टिफाई कर देते.. जब तक ईमानदार हुआ करते थे बहुत नाम कमाया लेकिन फिर इन्होंने सोचा कि लोगों की भावनाओं को उकसा कर फायदा लिया जा सकता है । पालघर का मुद्दा आपने उठाया जो बैठकर शांति से किया जा सकता था लेकिन आप तो खुद बताने लग गए कि कभी कोई साजिश है,कभी महाराष्ट्र सरकार है इसके पीछे , तो आपने साधुओं की आत्मा का भी मजाक बनाया, हर बार कातिल बदल बदल के आपने सुशांत सिंह की आत्मा का मजाक बनाया तो आपने पत्रकारिता के नाम पे सिर्फ लोगों की भावनाओं के साथ खेला,आप उस शिखर पे थे कि वाकई उस वर्ग की पिडा को एक सभ्य तरिके से पेश करते ताकि लोग आपको तमाशा समझ कर नहीं एक साथ मिल कर समझते कि कैसे सेक्युलरिज्म के नाम पे एक वर्ग के साथ गलत किया जा रहा है , लेकिन आपने राष्ट्रभक्ति का मजाक बनाया । 

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namitraturi9359

Namit Raturi

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