पल्लव की डायरी दिल मे जब ठेस लगती है मन मे धुँआ उठता है दर्द की दवा नही होती तब आखों से समुंदर झलकता है जब अपनो की रहनुमाई में पीड़ा का ज्वार भाटा फटता है विश्वास की देख रेख में उनका लहजा घायल करता है आँसुओ का किया है कलेजा मेरा फटता है सब कुछ दाँव पर लगा के फरेब जब अपना ही करता है चाहतो की दीवारें गिराकर खून आत्मा का करता है तब मन की आखों से लावा खून का उठता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" लावा खून का उठता है #WorldWaterDay