अरमानो की नाव लिए भटकता जा रहा हूँ अरमानो की नाव लिए भटकता जा रहा हूँ किसी के साथ तो किसी से बिछुड़ता जा रहा हूँ बस जरा सी चाह तो है ज़िन्दगी में मुक्कमल करने को , पर न जाने क्यों यु ही उलझनों में उलझता जा रहा हूँ लिए अरमानो को दिलो में पिरोता जा रहा हूँ किसी के साथ तो किसी से बिछुड़ता जा रहा हूँ, कोई रंज नहीं दुनिया के उल्फातो से ,बस यु ही उलझनों को सुलझाता जा रहा हूँ जो बिख़र गए है रिश्ते मेरे समय के अभावो में , फुर्सत मिलते ही उसे सँजोता जा रहा हूँ कभी भीड़ के संग तो, कभी निज अकेले चलता जा रहा हूँ अरमानो की नाव लिए भटकता जा रहा हूँ किसी के साथ तो किसी से बिछुड़ाता जा रहा हूँ। - Sumit कृष्णवंशी "ARMANO KI NAV LIYE BHATAKA JA RAHA HU"