गुस्से से बखूलाई थी सर पर जैसे आसमान उठाई थी नाराजगी भी उसकी जायज थी हम कुछ करें, उसकी यह ख्वाहिश थी किसने सोचा, जब बड़े हो जायेंगे तोड़ के उनके ख्वाबों को, अपना शीश महल बनायेंगे कदर करना छोड़ कर उनकी उनसे ही जुबां लड़ाएंगे किसने सोचा, इतना जल्दी हम सब भी बदल जायेंगे रोयेगी वो बूढ़ी आँखें, और हम ही उन्हें रुलायेंगे जो खुशियाँ अपनी लुटाया करते थे हमपर अब हम ही उन्हें सताएंगे किसने सोचा इतना जल्दी हम सब भी बदल जायेंगे ©rajnandini 🥰(sapna mahato)🥰 @sapna #rajnandini#