#मैं_हूँ अज़र मैं हूँ अमर, सदियों से मैं हूँ अज़र अमर, जब सृष्टि ने आकर लिया, तब मेरा भी निर्माण हुआ यह नील गगन तारे नक्षत्र, देखी है मैने बनते सब नही मार मुझे कोई सकता है, नही काट मुझे कोई सकता है कितने चोले बदले अब तक, है ज्ञात मुझे वो आज भी सब कभी राम जन्म का लेता हूँ, मर्यादा तुझे सिखाता हूँ कभी कृष्ण कन्हैया बनता हूँ फिर कर्म तुझे बतलाता हूँ तुम्हें बार-बार जतलाता हूँ, मैं हूँ अज़र मैं हूँ अमर नही आदी कहीं नही अंत कहीं, इतना विशाल ब्रम्हांड हूँ मैं बस जीवन ही बसता मुझमें, नही मृत्यु की कोई आस कहीं पाते मुझसे सभी जन्म सदा, आ जाते लौट फिर यहीं सदा यह जीवन का वह चक्र है, सदियों से जो चलता ही रहा तुम्हे बार बार जतलाता हूँ, मैं हूँ अज़र मैं हूँ अमर सदियों से मैं_हूँ अज़र अमर.!! #अजय57 #बज़्म मैं हीं ब्रम्ह हूँ...