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ये वाइज़ कैसी बहकी बहकी बातें हम से करते हैं कही

ये वाइज़ कैसी बहकी बहकी बातें हम से करते हैं 

कहीं चढ़ कर शराब-ए-इश्क़ के नश्शे उतरते हैं 

ख़ुदा समझे ये क्या सय्याद ओ गुलचीं ज़ुल्म करते हैं 

गुलों को तोड़ते हैं बुलबुलों के पर कतरते हैं

©Ram
  #Poetry #Bahki
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Ram

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Poetry #Bahki #कविता

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