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उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
 न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥

अर्थ: कार्य उद्यम से ही सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं। सोते हुए सिंह के मुँह में जाने वाले जैन्य नहीं आते॥

©YumRaaj YumPuri Wala
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