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मेरे ख्वाब चौं औंदी मूर्त, उस कमली जई। किस हा

मेरे ख्वाब चौं औंदी मूर्त,
     उस कमली जई।
किस हाल चौ,वसदी हाैं,
        पागल झल्ली अमली जई।
औनू सुख विच, रख्यो रब्बा 
तेथों अरदास मेरी,संबली जई।।
। वाहे गुरू वाहे गुरू । मेरी डायरी मेरी जिन्दगी
मेरे ख्वाब चौं औंदी मूर्त,
     उस कमली जई।
किस हाल चौ,वसदी हाैं,
        पागल झल्ली अमली जई।
औनू सुख विच, रख्यो रब्बा 
तेथों अरदास मेरी,संबली जई।।
। वाहे गुरू वाहे गुरू । मेरी डायरी मेरी जिन्दगी