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बचपन और शैतानी अपनी कलम बचपन की शरारतें घर

बचपन और शैतानी      
अपनी कलम 
बचपन की शरारतें घर के हर कोने में
रोज नयी खुशियाँ लाती है। 
कभी माँ के आँचल में छुप जाना तो कभी 
उसके पल्लू में मुस्कुराना आज भी मन को लुभाती है।
पापा के घर लौटने की आवाज़ 
मूझे कोने में छुपाती है। 
दरवाजे के अन्दर आते ही कोने से धक्का लगाती है। 
यह बचपन की शरारतें कभी पापा को
तो कभी दादा- दादी को डराती है।
बचपन की शैतानिया आज भी 
घर के हर कोने में मंडराती है।
बचपन की शरारतें घर के कोने में 
रोज नयी खुशियाँ लाती है।
कान्ता कुमावत

©kanta kumawat अपनी कलम 

अपनी कलम 

#bachpan
बचपन और शैतानी      
अपनी कलम 
बचपन की शरारतें घर के हर कोने में
रोज नयी खुशियाँ लाती है। 
कभी माँ के आँचल में छुप जाना तो कभी 
उसके पल्लू में मुस्कुराना आज भी मन को लुभाती है।
पापा के घर लौटने की आवाज़ 
मूझे कोने में छुपाती है। 
दरवाजे के अन्दर आते ही कोने से धक्का लगाती है। 
यह बचपन की शरारतें कभी पापा को
तो कभी दादा- दादी को डराती है।
बचपन की शैतानिया आज भी 
घर के हर कोने में मंडराती है।
बचपन की शरारतें घर के कोने में 
रोज नयी खुशियाँ लाती है।
कान्ता कुमावत

©kanta kumawat अपनी कलम 

अपनी कलम 

#bachpan