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कुछ लोग शौक़ नए आजमाते रहे। और वही क़िस्मत की खात

कुछ लोग शौक़ नए आजमाते रहे।
और वही  क़िस्मत  की  खाते रहे।
उनके हाथ में लकीर कहाँ होती है!
जो अपने खेतों में  हल चलाते रहे।

छूकर देखा कभी हाथ मज़दूर का।
कभी साथ दिया किसी मज़बूर का।
हाथों की लकीर दिखतीं नहीं साहब!
लोग कहते यह  खेल है तक़दीर का। 🎀 Challenge-278 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 8 पंक्तियों में अपनी लिखिए।
कुछ लोग शौक़ नए आजमाते रहे।
और वही  क़िस्मत  की  खाते रहे।
उनके हाथ में लकीर कहाँ होती है!
जो अपने खेतों में  हल चलाते रहे।

छूकर देखा कभी हाथ मज़दूर का।
कभी साथ दिया किसी मज़बूर का।
हाथों की लकीर दिखतीं नहीं साहब!
लोग कहते यह  खेल है तक़दीर का। 🎀 Challenge-278 #collabwithकोराकाग़ज़

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