आज मेरे शहर ने बुलाया है मुझको याद हर दिन पुराना आया है मुझको। सारी गालियां शहर की छोटी हुई हैं तंग इनका यों होना न भाया है मुझको। आम,अमरूद-नींबू थे फलते जहाँ पर इमारतों का यों फलना न भाया है मुझको। बेखबर दीन-दुनिया से खेलते थे जहाँ पर उन गलियों में डरना न भाया है मुझको। इस शहर के नजारे हैं नजरों में मेरे। बदला-बदला शहर ये भाया न मुझको।