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आज मेरे शहर ने बुलाया है मुझको याद हर दिन पुराना

आज मेरे शहर ने बुलाया है मुझको 
याद हर दिन पुराना आया है मुझको।
सारी गालियां शहर  की छोटी हुई हैं
तंग इनका यों होना न भाया है मुझको।
आम,अमरूद-नींबू थे फलते जहाँ पर
इमारतों का यों फलना न भाया है मुझको।
बेखबर दीन-दुनिया से खेलते थे जहाँ पर
उन गलियों में डरना न भाया है मुझको।
इस शहर के नजारे हैं नजरों में मेरे। 
बदला-बदला शहर ये भाया न मुझको।
आज मेरे शहर ने बुलाया है मुझको 
याद हर दिन पुराना आया है मुझको।
सारी गालियां शहर  की छोटी हुई हैं
तंग इनका यों होना न भाया है मुझको।
आम,अमरूद-नींबू थे फलते जहाँ पर
इमारतों का यों फलना न भाया है मुझको।
बेखबर दीन-दुनिया से खेलते थे जहाँ पर
उन गलियों में डरना न भाया है मुझको।
इस शहर के नजारे हैं नजरों में मेरे। 
बदला-बदला शहर ये भाया न मुझको।