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आज उसे लग रहा था कि वो थक सा गया है,ऐसा वो नही बल्

आज उसे लग रहा था कि वो थक सा गया है,ऐसा वो नही बल्कि उसके कदमो की आहट बता रही थी!थोरी सी उदाशी का गुब्बार था कि उसके चेहरे से झलक रहा था,वो हारने बाला इंसान नही था और ना ही वक्त के ठोकरो मे इतनी ताकत थी कि उसके हौशले की दिवार को जमीनदोस कर सके!

उसने समय के साथ बहुत हीं दो चार किये थे और हर बार ही उसे लगा था कि समय के चक्रवात पर उसने विजय पा ली है!क्या क्या नही किया था उसने अपनो के लिये!हर उस ख्वाहिशो को पुरा करने के लिये अपने खुशी की तिलांजली दे दी!पर वो अपनो को ना जीत सका और ना ही समझ सका की परायापन की परिभाषा क्या होती है!

सोंचते सोंचते उसके आँखो से आंसु के दो बुंद छलक परे!दिल मे लगा कि कोई कांटा सा चुभ गया हो!बरी मुश्किल से उसने अपने आप को संभाला और श्वत: हीं मुस्कुरा परा!वो जानता था कि बीते वक्त की परते कुरेदने से दर्द हीं हांशील होता है!वो सोंच हीं रहा था कि दुर कहीं मंदीर के घंटे का अवाज उभङा!श्रधा सुमन से उसका हृदय भर गया!

एक इश्वर हीं तो है,जीसके उपर किये विश्वास का प्रतिफल रिफंड मिलता है!शाम हो चुकी थी,वो वृधाश्रम के इस रुम मे अकेला ही विचारो के झंझावात मे उलझा हुआ था!उसे कभी कभी यकीन होने लगता था कि उसका जीवन फिर से गुलजार होने बाला है!लेकिन था भ्रम ही ना,जो कितनी बार झटके से टुट चुका था!उसे याद हो आया कि कैसे जब तक साधना जीवीत थी,तब तक परिवार मे उसका हीं सीक्का चलता था,लेकिन साधना के जाते हीं वो कमजोर हो गया और उसके बेटे और बहु ने उसे दुध मे परे मख्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया और वो सीधे वृधाश्रम के द्वार पर फेंक दिया!!

आज उसे लग रहा था कि वो थक सा गया है,ऐसा वो नही बल्कि उसके कदमो की आहट बता रही थी!थोरी सी उदाशी का गुब्बार था कि उसके चेहरे से झलक रहा था,वो हारने बाला इंसान नही था और ना ही वक्त के ठोकरो मे इतनी ताकत थी कि उसके हौशले की दिवार को जमीनदोस कर सके! उसने समय के साथ बहुत हीं दो चार किये थे और हर बार ही उसे लगा था कि समय के चक्रवात पर उसने विजय पा ली है!क्या क्या नही किया था उसने अपनो के लिये!हर उस ख्वाहिशो को पुरा करने के लिये अपने खुशी की तिलांजली दे दी!पर वो अपनो को ना जीत सका और ना ही समझ सका की परायापन की परिभाषा क्या होती है! सोंचते सोंचते उसके आँखो से आंसु के दो बुंद छलक परे!दिल मे लगा कि कोई कांटा सा चुभ गया हो!बरी मुश्किल से उसने अपने आप को संभाला और श्वत: हीं मुस्कुरा परा!वो जानता था कि बीते वक्त की परते कुरेदने से दर्द हीं हांशील होता है!वो सोंच हीं रहा था कि दुर कहीं मंदीर के घंटे का अवाज उभङा!श्रधा सुमन से उसका हृदय भर गया! एक इश्वर हीं तो है,जीसके उपर किये विश्वास का प्रतिफल रिफंड मिलता है!शाम हो चुकी थी,वो वृधाश्रम के इस रुम मे अकेला ही विचारो के झंझावात मे उलझा हुआ था!उसे कभी कभी यकीन होने लगता था कि उसका जीवन फिर से गुलजार होने बाला है!लेकिन था भ्रम ही ना,जो कितनी बार झटके से टुट चुका था!उसे याद हो आया कि कैसे जब तक साधना जीवीत थी,तब तक परिवार मे उसका हीं सीक्का चलता था,लेकिन साधना के जाते हीं वो कमजोर हो गया और उसके बेटे और बहु ने उसे दुध मे परे मख्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया और वो सीधे वृधाश्रम के द्वार पर फेंक दिया!!

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