कोई जीवन लिखे धरा पर माया को आकाश समझ कर हमने हरमन पड़ा सदा ही मधुसूदन का वास समझकर हमने जिसको गले लगाया मन अंतस के पास समझकर हमने सारे भेद बताएं जिसको अपना खास समझकर उसने अब किरदार बदल कर फिर से नई कहानी लिख दी दो भागों में बांटा मुझको पल पल में हैरानी लिख दी एक पलड़े में लिखी कहानी बोला तुम तो सत्य सिंधु हो परिभाषाएं बदल बदल कर बोला तुम तो दीनबंधु हो शीतलता है जिसकी उपमा उस उपमा से बंधे इंदु हो प्रणय जहां से प्यास बुझाई उस सरिता से जुड़े सिंधु हो उसने जीवन की पंक्ति में उपमा वही पुरानी लिख दी दो भागों में बांटा मुझको पल पल में हैरानी लिख दी एक सिरे पर लिखा निरर्थक हो जैसी खुद की छाया हो पंक्ति बढ़ाकर लिखा जो विनिमय ना हो एक ऐसी माया हो जिसमें भाव पनप न पाएं माटी की ऐसी काया हो शब्दों से ऐसे लगता है जैसे अहम् स्वयं आया हो मेरे हाथों में विधिना ने कैसी अजब कहानी लिख दी दो भागों में बांटा मुझको पल पल में हैरानी लिख दी कोई जीवन लिखे धरा पर माया को आकाश समझ कर हमने हरमन पड़ा सदा ही मधुसूदन का वास समझकर हमने जिसको गले लगाया मन अंतस के पास समझकर हमने सारे भेद बताएं जिसको अपना खास समझकर उसने अब किरदार बदल कर फिर से नई कहानी लिख दी दो भागों में बांटा मुझको पल पल में हैरानी लिख दी एक पलड़े में लिखी कहानी बोला तुम तो सत्य सिंधु हो