शुक्र गायत्री मंत्र : -ॐ भृगुजाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात् || -ॐ भृगुपुत्राय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो कवि: प्रचोदयात् || -ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो शुक्रः प्रचोदयात || विष्णु सहस्रनाम-एक हजार नाम -(प्रतिदिन 11 नाम) आज 12से 22 नाम 12 मुक्तानां परमा गतिः: सभी आत्माओं के लिए पहुँचने वाला अंतिम लक्ष्य 13 अव्ययः अविनाशी 14 पुरुषः पुरुषोत्तम 15 साक्षी बिना किसी व्यवधान के अपने स्वरुपभूत ज्ञान से सब कुछ देखने वाला 16 क्षेत्रज्ञः क्षेत्र अर्थात शरीर; शरीर को जानने वाला 17 अक्षरः कभी क्षीण न होने वाला 18 योगः जिसे योग द्वारा पाया जा सके 19 योगविदां नेता योग को जानने वाले योगवेत्ताओं का नेता 20 प्रधानपुरुषेश्वरः प्रधान अर्थात प्रकृति; पुरुष अर्थात जीव; इन दोनों का स्वामी 21 नारसिंहवपुः नर और सिंह दोनों के अवयव जिसमे दिखाई दें ऐसे शरीर वाला 22 श्रीमान् जिसके वक्ष स्थल में सदा श्री बसती हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' शुक्र गायत्री मंत्र : -ॐ भृगुजाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात् || -ॐ भृगुपुत्राय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो कवि: प्रचोदयात् || -ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो शुक्रः प्रचोदयात ||