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रातों की ठिठुरन सिमट गई जो धुंधला था वो साफ हुआ ये

रातों की ठिठुरन सिमट गई
जो धुंधला था वो साफ हुआ
ये दुनिया काम में डूब गई
और हम डूबे मयखाने में 

अब कर ना कर कोई रोक टोक
जो कुछ भी है वो सामने ला
चखने की कोई तलब नहीं
तु जाम पिला बस जाम पिला

बोतल जो खड़ी थी लुढ़क गई
पर मुझ पे नशे का जोर नहीं
जो साथ में थे सब टल्ली हुए
पर मैंने कहा एक और बना

फिर शाम हुआ यह दिन सिमटा
सूरज दरिया में डूब गया
सब अपने घर को लौट चलें 
और हम लौटे मदिरालय में

ना शाम सुबह की खबर मुझे
मैं हरदम नशे मे डुबा हूं
क्यों देख रहे हैं सब मुझको
क्या लगता कोई अजुबा हूं

हां माना की मैं पीता हूं
अपने ही धुन में जिता हूं
पर सच पूछो तो बात कहूं
बस इसी के दम पे जिता हूं

©Mr Raisahab
  #शराबी