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#OpenPoetry मेरी चाहत काश पर होता मुझे भी मैं भ

#OpenPoetry 

मेरी चाहत

काश पर होता मुझे भी
मैं भी उड़ता नील गगन मे,
हवा मे घूमता घटा को चुमता 
रहता यूहिं मगन मे |
हो जाता मैं यहाँ का शहंशाह
होते नौकर चाकर बंगला और बेगम,
सारा जहाँ मेरे कदमो मे होता 
पर ना होता कोई गम |
छू लेता मैं हरेक उंचाइयों को 
होके दुनिया से बेखबर ,
पा लेता मैं हरेक मंजिल 
किंतु पांव होते मेरे धरा पर |
बस इतनी सी है चाहत मेरी
हो मेरा हर ख्वाइश पुरा , 
हर सपना सच हो मेरा 
ना रहे कोई तमन्ना अधूरा |
एक और कृपा करना मेरे खुदा , 
ना हौउँ कभी अपनो से जुदा |
कभी ना भुलुं अपनी परछाई को ,
ना मैं तजुं माता पिता गुरू और सांई को |
                
                  अवध किशोर पंडा
#OpenPoetry 

मेरी चाहत

काश पर होता मुझे भी
मैं भी उड़ता नील गगन मे,
हवा मे घूमता घटा को चुमता 
रहता यूहिं मगन मे |
हो जाता मैं यहाँ का शहंशाह
होते नौकर चाकर बंगला और बेगम,
सारा जहाँ मेरे कदमो मे होता 
पर ना होता कोई गम |
छू लेता मैं हरेक उंचाइयों को 
होके दुनिया से बेखबर ,
पा लेता मैं हरेक मंजिल 
किंतु पांव होते मेरे धरा पर |
बस इतनी सी है चाहत मेरी
हो मेरा हर ख्वाइश पुरा , 
हर सपना सच हो मेरा 
ना रहे कोई तमन्ना अधूरा |
एक और कृपा करना मेरे खुदा , 
ना हौउँ कभी अपनो से जुदा |
कभी ना भुलुं अपनी परछाई को ,
ना मैं तजुं माता पिता गुरू और सांई को |
                
                  अवध किशोर पंडा