मुखड़ा लगता टुकड़ा शशि का,लगते अधरान गुलाब कली है । घुल साँसन में मकरंद रहो,अरु आँखन कोर कटार ढली है । मिल संग सखी गगरी धर के,भरने पनियाँ मुसकात चली है । मनमोहन ने मग घेर लयी,सकुचाय खड़ी बृषभान लली है । ©kavi Rajan Bhadauriya #सवैया छंद nojoto like AMBRISH CHANDRA BHARAT Om writes Arun Raaj Rajpoot Vijay