शाम ढलती है, सूरज छिप जाता है, रात का समा खिलता है, चाँद भी हल्की हल्की रोशनी बिखेरता है, कहीं कोई हसीन गुफ़्तगू करता है, तो कहीं कोई तकिये संग रोता है। चाहे दिन भर रखो कितना भी व्यस्त खुद को, लेकिन रात को एक लम्हा तन्हाई का, तुझे कमजोर कर ही देता है, उस पल मैं ना चाहकर भी तू, सरक जाता है उसकी यादों में। हो जाती है आँखे नम और, बह जाता है अश्क का सैलाब, कशमकश दिल की बढ़ती ही जाती है, फिर भी हाथ न लगे कुछ, रात भी सितम गुजारती है, और कमबख्त सुबह भी जल्दी नहीं होती। -Nitesh Prajapati केवल सहभागिता हेतु। 🌺 यह पोस्ट रचनात्मक कौशल और अभिव्यक्ति हेतु है। यह कोई प्रतियोगिता नहीं है। 🌺 सहभागिता के द्वारा लेखन/रचना कौशल में वृद्धि तथा हृदयानुभूति व्यक्त कर मंच के साथ साझा कीजिये। 🌺 सुंदर रचना मंच द्वारा हाईलाइट की जाएगी।