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जाने क्यों कविता बन जाती है, दिल के सूने तार हिलात

जाने क्यों कविता बन जाती है, दिल के सूने तार हिलाती है।
चाह जीवन के गीत सुनाऊँ, पर वह बीती याद दिलाती है।।
आशा भरे सपन हैं, फिर भी निराशा के दृश्य दिखाती है ।
चाह जीवन का श्रंगार करूँ मैं, पर वह वियोगी मुझे बनाती है।।
जीवन क्षणिक  कहाता है और मानव को बढ़ते जाना है।
कर्मप्रधान जीवन की राह से,जीवन संगीत सुनाती है ।।
भूत,भविष्य की सोच समस्या, और जटिल हो जाती है।
वर्तमान ही सच्चा साथी है,कविता यह याद दिलाती है ।।

©Shubham Bhardwaj
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