हर कहीं दोस्त, बाप छत के लिए बेकरार है, तो औलाद को हिस्से का इंतज़ार है, किसी को मेहनत का मुआवजा नहीं नसीब है, तो किसी का स्वास्थ्य ही अज़ीज़ है, ऊपरवाले से दुआ करता हर शख्स, रहता है नित नई उलझन में अगर, अपनी हार वह कतई स्वीकार नहीं करता, ऊपरवाला भी अचरज में, इन्सान की हर करतूतपर हामी नहीं भरता।। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार...📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-18 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 6-8 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा। 💫 प्रतियोगिता ¥18:- उलझनें बहुत हैं