कैसे चलती है तू चाल ज़िन्दगी क्या है तुझे इसका मलाल ज़िन्दगी सोच था उसके मिलने पे थोड़ा चैन आएगा फिर भी तू करती क्यों बेताब ज़िन्दगी जिस हुस्न ने किए जाने कितनों को ही बर्बाद तू क्यों लिखती है उसी पर क़िताब ज़िन्दगी तू तो खुद एक सवाल है सबके लिए तो क्यों करती है लोगों से सवाल ज़िन्दगी तूने हर ज़ख़्म का रंग लाल कर दिया पहर क्यों लगाती है तू गुलाल ज़िन्दगी तेरे दिए ज़ख़्म ही कम नहीं तो फ़िर क्यों मचाती है तू बवाल जिंदगी कहाँ मिलती है खुशी जीने में और तू बन आया है गमों का दलाल ज़िन्दगी तूने ही तो सिखायी है नादानियाँ हमको और खुद ही बन जाती है समझदार जिन्दगी like and comments if you like