वन्दनाओं का फल हूं मैं, आस्थाओं का प्रसाद हूं, सूनी कोक की मज़बूरी हूं मैं, ऐसी श्रापित औलाद हूं। रक्षक बनने को जन्म हुआ, पर समाज का अब मैं दर्द हूं, पुरूष होना बस मेरा अभिमान है, दूर रहो मुझसे मैं मर्द हूं।। मज़ारों की इल्तज़ा हूं मैं, पूजाओं का आशीर्वाद हूं, जनने वालों का कल हूं मैं, हर घर की मैं फरियाद हूं। अपराध करना मेरा अधिकार है, अब मानवता का सिरदर्द हूं, पुरूष होना बस मेरा अभिमान है, दूर रहो मुझसे मैं मर्द हूं।। भगवान समझता हूं खुद को, पुरूषार्थ मेरा अभिमान है, मैं ही परम सत्य हूं, व्यर्थ औरों का सम्मान है। तबाह करदी आबरू औरत की, ऐसा तो मैं बेदर्द हूं, पुरूष होना बस मेरा अभिमान है, दूर रहो मुझसे मैं मर्द हूं । क्यूं लाड़ इतना दिया मुझे मां, देखो हो गया मैं कितना खुदगर्ज़ हूं, बिन मानवता सा पत्थर हूं , मैं बस एक बेशर्म मर्द हूं।। #shaayavita #mard #mardaangi #inspirational #nojoto