कलाई पर बंधी ये राखी आज भी, कलाई पर बंधी ये राखी आज भी हैं कहती बस बहनों से सजती सस्ती ना ही कोई मेहगी हर रूप हर रगं मे हैं सजती ये प्रेम बधंन हैं कोई एक धागा नहीं ,दुर हो जाए कितना भीटुटे से भी न जो टुटे हैं ये बधंन वो ही राखी