गलतियाँ करके नादान, समझता ही नहीं। दिल की अपनी पहचान, समझता ही नहीं।। जिसने किया खड़ा तुझे, झूठ बोलता उसे। फर्क करती रही जुबान, समझता ही नहीं।। उसको कहता है , करता हूँ काम नेकी से। तेरी सीरत में अभिमान, समझता ही नहीं।। ज्यों-ज्यों सर खपाता है, बदइंतजामी में। होने लगता नुकसान, समझता ही नहीं।। ज्यों-ज्यों गिरकर उठाता , अपना सपना। मरता जाता स्वाभिमान, समझता ही नहीं।। अंधेरों ने रोशनी से दोस्ती कर ली 'सुओम'। खोता जाता है तू पहचान, समझता ही नहीं।। ©Manav Singh Rana #Nojoto Udass Afzal khan ❣️Dard ki jaan Mr Ismail Khan