नशे-मन में हूँ यारों मैं, मुझे दुनिया का होश नहीं हैं, कम्बख्त उसकी यादें फिर रूह से बेपर्दा हो रही हैं। वो बेवफा सुकून से किसी की बाहों में सो रही हैं, जुस्तजू में उनकी, यहां मेरी आंखें नम हो रही है। अरे कोई तो उन्हें एहसास दिलाओ हमारे दर्द का, सब जानते हुये भी, इत्मीनान से बेखबर हो रही हैं। ये चंद पन्क्तियाँ कल रात में मैनें लिखी थी तन्हाई में ज़िन्दगी का एक दौर याद करते हुए। जो जुड़े आप इन जज़्बातों से इत्तला ज़रूर करियेगा। आपका अपना, अंजान 'इकराश' P.C: Google Credit