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पल्लव की डायरी फूल भी अब नफरतों के साये में रहने ल

पल्लव की डायरी
फूल भी अब नफरतों के साये में रहने लगे है
बगावती सुर उनमें भी फूटने लगे है
कसूर उनका भी किया बयान करू
लोग उनकी जड़ो में
जहरीले केमिकल्स छोड़ने लगे है
धिक्कार है मानव जाति को
लालच के साये में कितने पाप पनपने लगे है
शौक फरमाने के लिये
आर्टिफिशियल चीजो को सजाकर
विरासत की हर चीज को
मिटाने की घोषणा कर चुके है
                                           प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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