उडु गगन मे पंख लगाकर कुछ और दूर जाने को, मैं मिला कुछ और मिले अपनी-अपनी मंजिल पाने को, ढल गया सूरज भी फिर से आने को ख्वाब ढले ना मन कि उम्मीद अब्र भी राजी है अब तो दम से बरस जाने को.. अब्र का सब्र मत करो...