लोगों की ख्वाहिशों का बोझ लिए चलते हैं । सपनों को भुला कर हर रोज लिए चलते हैं । समझते हुए भी सब जमाने को खुश रखना पड़ेगा । इसलिए सुबह को साँझ लिए चलते हैं । लोगों की ख्वाहिशों का बोझ लिए चलते हैं । ऐक दिन की बात नंही हर रोज लिए चलते हैं । यह जो गलियों में कंही मर जाते हैं । मासूम आँखों के स्वप्न वंही घुट मर जाते हैं । ड़र जो जमाने का लगे तो समझ लेना। बड़ते हुए कदम भी ड़र जाते हैं । कन्धों पे जमाने का बोझ लिए चलते हैं । लोगों की ख्वाहिशों को हर रोज लिए चलते हैं ।