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एक बेटा, एक भाई, एक पिता ना जाने कितने रिस्तो का

 एक बेटा, एक भाई, एक पिता
ना जाने कितने रिस्तो का सरदार था
सबके मुस्कान का सरताज था
कभी तिरंगे में लिपट के आए 
कुछ ऐसा उसका अंदाज था
वो न कभी अपने बारे में सोचता
उसको तो बस अपने कर्तव्य का मोहताज था
जाहां सारी दुनिया उसकी राह देखता
वह गर्व से मां के अंचल में लिपट होता
हां कुछ अलग ही उसका अंदाज था
अमर जवान ऐसे तोड़ी न कहलाता!!

— % & #pulwamaattack #pulwamamartyrs #poetry #country #sacrifice
 एक बेटा, एक भाई, एक पिता
ना जाने कितने रिस्तो का सरदार था
सबके मुस्कान का सरताज था
कभी तिरंगे में लिपट के आए 
कुछ ऐसा उसका अंदाज था
वो न कभी अपने बारे में सोचता
उसको तो बस अपने कर्तव्य का मोहताज था
जाहां सारी दुनिया उसकी राह देखता
वह गर्व से मां के अंचल में लिपट होता
हां कुछ अलग ही उसका अंदाज था
अमर जवान ऐसे तोड़ी न कहलाता!!

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