आज भी तुम जियो न अपनी शर्तो पे जो तुमने कभी ठानी थी, मैं तो पुरुष हूँ तुम्हारी कमजोरियों को हवा दूंगा और तुम्हारा जो समाजीकरण हुआ है तुमको राजी कर लेगा कि मैं सही हूँ छोड़ दो तुम अपने सपने को स्थगित कर दो उड़ान को लौट आओ समाज के कुचक्र में घुट घुट कर जियो और तैयार करो मेरे जैसे पुरुष को अपनी जैसी स्त्री को ताकि समाजीकरण की प्रक्रिया चलती रहे दम घोटू शान में पुरुष जकड़ा रहे स्त्री जुर्म सहती रहे सीमित संसाधनों पे पुरुष अपना कब्जा जमाए रहे। तुम्हारा सपनों को पूरा करने की जिद करना खतरा है इसलिए मेरे अंदर का पुरुष तुम्हरे सपनों से डरा है, तुम मत छोड़ो न अपनी जिद पूरा करो अपने सपनो को तुम्हरे सपने पे ही पुरुष का मुक्त होना स्त्री का मुक्त होना दोनों के सपनो का बराबर होना टिका है। #Freedom स्त्री-पुरुष के सपनो का बराबर होना