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आज कर दिया मैने अपने जिंदा होने का एलान।। शरीर है

आज कर दिया मैने अपने जिंदा होने का एलान।।
शरीर है बेजान पर ज़ुबान पर कौन लगाए लगाम।।
जब हो जाए बुराई की अति,  तो उस सामाजिक बीमारी के विनाश की तैयारी,
अब ये रह न गई सिर्फ मेरी कहानी, किसी और के साथ ऐसा न हो,
इस मकसद को कर दिया समर्पित।। अपना अस्तित्व अपनी रूह और ये शरीर।।
क्योंकि मैं उनमें से नहीं जो करें किसी की समस्या का बहिष्कार।।
वो भी सिर्फ इसलिए की मुझे और मेरे परिवार को अब तक बनाया नहीं अपना शिकार।।
नफरत है मुझे उन लोगों से, जो बनाते हैं किसी की दुर्गति का मज़ाक!
और कुछ सालों बाद जब वही दुर्गति आकर खटखटाती इनका दरवाजा,
ये बुजदिल बजाय समझने होता क्या है कार्मिक इंसाफ,
करने लगते है हाय हाय राम मुझे बचाए,
दुनिया के सामने इनका असली चेहरा निखरता,
किधर छुपाए खुद को पर खुद से भागें हो जाता है एहसास।।
सारी जिंदगी बोलते आए खुद से झूठ,
गाड़ी, बंगला, जायदाद, आज कोई न आए साथ, टूट गई वो नकली पहचान।
टूट गए सफलता के को मापने के औजार।
ये वो लोग है जो अब खुद को शीशे में देखने से डरे।
जिंदगी भर जिसने अपने सच को दबाया या झुटलाया!
कैसे करे वो अपने सच को स्वीकार!!
पर मुझे इनकी समझ से कुछ लेना देना नहीं,
मैं किसी अनहोनी के होने की आस में बैठा नहीं,
मै तो उतरा हूं मैदान में लेकर इसको तोड़ने का हथियार!
कानून बनाए धाराएं जो बतलाए किस सजा का कौन और कैसे हो हकदार।।
इतना समय मेरे पास नहीं, मैं तो करने आया टीकाकरण।।
जुल्मों के स्त्रोत का करने इलाज।। क्योंकि मेरी समझ से है ये बाहर।
की कानून और सजा लागू होने का आधार। करे अपराध की पूर्णता का इंतजार।।
यानि बलात्कार का होना जरूरी  तभी तो बलात्कारी को मिले कठोर सजा।
अरे कोई ये सोचता की नहीं, की हां इंसाफ तो मिल गया,
पर क्या उस लड़की की रूह को मलहम मिल गया!
अरे इस बात पर क्यों नहीं करता कोई गौर! की बलात्कार हो ही न पाए,आए ऐसा दौर!!!
असली दिक्कत कहा और क्यों है!
ये सदियों से चलती आ रही बीमारी के तोड़ पर इंसान क्यूं इतना खामोश है!।।।।।

©Akhil Kael #riseofphoenix #stormofphoenix #सत्य #सच #सच्चाई #जीत 

#Anhoni
आज कर दिया मैने अपने जिंदा होने का एलान।।
शरीर है बेजान पर ज़ुबान पर कौन लगाए लगाम।।
जब हो जाए बुराई की अति,  तो उस सामाजिक बीमारी के विनाश की तैयारी,
अब ये रह न गई सिर्फ मेरी कहानी, किसी और के साथ ऐसा न हो,
इस मकसद को कर दिया समर्पित।। अपना अस्तित्व अपनी रूह और ये शरीर।।
क्योंकि मैं उनमें से नहीं जो करें किसी की समस्या का बहिष्कार।।
वो भी सिर्फ इसलिए की मुझे और मेरे परिवार को अब तक बनाया नहीं अपना शिकार।।
नफरत है मुझे उन लोगों से, जो बनाते हैं किसी की दुर्गति का मज़ाक!
और कुछ सालों बाद जब वही दुर्गति आकर खटखटाती इनका दरवाजा,
ये बुजदिल बजाय समझने होता क्या है कार्मिक इंसाफ,
करने लगते है हाय हाय राम मुझे बचाए,
दुनिया के सामने इनका असली चेहरा निखरता,
किधर छुपाए खुद को पर खुद से भागें हो जाता है एहसास।।
सारी जिंदगी बोलते आए खुद से झूठ,
गाड़ी, बंगला, जायदाद, आज कोई न आए साथ, टूट गई वो नकली पहचान।
टूट गए सफलता के को मापने के औजार।
ये वो लोग है जो अब खुद को शीशे में देखने से डरे।
जिंदगी भर जिसने अपने सच को दबाया या झुटलाया!
कैसे करे वो अपने सच को स्वीकार!!
पर मुझे इनकी समझ से कुछ लेना देना नहीं,
मैं किसी अनहोनी के होने की आस में बैठा नहीं,
मै तो उतरा हूं मैदान में लेकर इसको तोड़ने का हथियार!
कानून बनाए धाराएं जो बतलाए किस सजा का कौन और कैसे हो हकदार।।
इतना समय मेरे पास नहीं, मैं तो करने आया टीकाकरण।।
जुल्मों के स्त्रोत का करने इलाज।। क्योंकि मेरी समझ से है ये बाहर।
की कानून और सजा लागू होने का आधार। करे अपराध की पूर्णता का इंतजार।।
यानि बलात्कार का होना जरूरी  तभी तो बलात्कारी को मिले कठोर सजा।
अरे कोई ये सोचता की नहीं, की हां इंसाफ तो मिल गया,
पर क्या उस लड़की की रूह को मलहम मिल गया!
अरे इस बात पर क्यों नहीं करता कोई गौर! की बलात्कार हो ही न पाए,आए ऐसा दौर!!!
असली दिक्कत कहा और क्यों है!
ये सदियों से चलती आ रही बीमारी के तोड़ पर इंसान क्यूं इतना खामोश है!।।।।।

©Akhil Kael #riseofphoenix #stormofphoenix #सत्य #सच #सच्चाई #जीत 

#Anhoni