(तुम और मैं भाग -5) जानता हूं मैं सुकून की मेरी यें तलाश नाकाफी है प्रेम करने वालो को सुकून कहां और अगर होता भी है तो मुझे उसका अहसास नहीं तुम्हारे प्रेम के विशाल समंदर में उतरा मगर तैरना सीख न पाया और डूब गया चापलूसी से रिश्ता नहीं रहा कभी तो किसी ने बचाया भी नहीं प्रेम कोई वस्तु नहीं जिसे फिर पसंद कर लिया जाये इसीलिए मैं प्रैक्टिकल हो नहीं पाया और आज भी बिलकुल वैसा ही हूं बस बचपना खो दिया मैंने खुल कर खिलखिलाये जमाना बीत चुका है.. जैसे बचपन में चवन्नी न मिलने पर ऐसा लगता था जैसे कोई मुझे प्यार ही नहीं करता हो आज भी वैसा ही हूं.. . भाग -5