कभी सोचता हूँ कि युद्ध का अनुभव करूँ मैं
कभी सोचता हूँ कि मैं मृत्यु के आँचल से लिपटू
फिर सोचता हूँ युद्ध तो आता नही
तो सीखना मैं चाहता हूँ जैसे अभिमन्यु ने सीखा
फिर युद्ध मैं भी करना चाहता हूँ कृष्ण सा
फिर चाह हो जाती है मेरी भीष्म जैसी मृत्यु हो
जब तक न चाहूँ मृत्यु को मैं वो हाथ बांधे हो खड़ी कोने में जैसे
फिर सत्य को में चाहता हूँ सीख लूँ युधिष्ठिर से