बचपन था जैसे प्यारा सुंदर सपना सलोना, रहता था हाथ में हरदम छोटा सा खिलौना। जब भी याद आती है बचपन की यादें सब, भर जाता है खुशी से दिल का हर एक कोना। बड़ी याद आती है वह अंजानी नादानियां, करते रहते थे हम जाने कितनी अठखेलियां। बेफिक्री की जिंदगी जीते थे ना था कोई गम, खेलते थे सब मिल ना होता था कोई भेदभाव। बैठ कर खाते पीते थे सब संग में मिलकर, ना जानते थे कोई जात- पात, ऊंचा -नीच। बचपन में दोस्तों से लड़ते झगड़ते रहते थे, फिर मान जाते, सब भुलाकर संग खेलते। काश हमें हमारा बचपन वापस मिल जाता, हम बन जाते बच्चे और सब वैसा हो जाता। -"Ek Soch" सम रूल्स ** यह प्रतियोगिता 18 है । ** कोलैब ऑक्शन कृपया ऑफ करें आप लोग कोलैब करने के बाद । ** समय - दोपहर के 01 : 30 बजे तक कोलैब कर सकते हैं ।