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उसकी चांद-बाली (लघु कथा) (रचना अनुशीर्षक में पढ़े

उसकी चांद-बाली (लघु कथा)

(रचना अनुशीर्षक में पढ़ें) उसकी चांद बाली (लघुकथा)
..…...........….……............
वह शायद राजस्थान से थी। बातचीत से तो कुछ ऐसा ही लगता था। अक्सर सब्जी की टोकरी लेकर आ जाती थी मेरे मोहल्ले में । मेरी सासू मां को उसकी लाइ सब्जियां बहुत अच्छी लगती थी। ज्यादा भाव ताव भी नहीं करती थी। अम्मा जो भी दे दें उस पर राज़ी रहती थी। बदले में अम्मा उसे कुछ न कुछ अतिरिक्त देती रहती थी। कभी पुरानी धोती कभी बच्चों के लिए कुछ खाने को कभी और भी किसी तरह की जरूरत का सामान है,जो भी वो अम्मा से मांगे। दोनों में बड़ी मीठी से मित्रता और स्नेह बन गया था।मेरी बेटी उस समय छः सात वर्ष की थी। एक दिन उसने अम्मा से बिटिया के कपड़े मांगे। अम्मा ने बड़ी खुशी खुशी कुछ पुराने फ्रॉक  लेकर रख लिए। धीरे-धीरे दो हफ्ते गुजर गए पर वो आई नहीं। अम्मा उसका कोई ठिकाना नहीं जानती थी ना ही उसका नाम जानती थी।उसे लेकर थोड़ी सी सशंकित जरूर हो गई। थोड़ा और वक्त बीता और उसकी स्मृतियां धुंधली सी होने लगी।बस याद रह गई उसके कानों में डोलती वह चांद बाली। चांदी की थी पर जब भी वह बात करती तो उसका एक हाथ चांद बाली को टटोलता सा रहता। जैसे आश्वस्त होना चाहती हो। एक दिन हम ने पूछ भी लिया कि क्या उसे यह चांद बाली बहुत प्रिय है? इसमें कोई खास बात है? इतराते हुए बोली कि उसने खुद खरीदी है; अपनी कमाई से। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक देखने लायक थी।इस बात को चार पांच वर्ष बीत गए। इस बीच माता जी का देहांत हो गया और हम अपने अपने जीवन में इस कदर उलझे रहे कि उस सब्जीवाली का ख्याल जाता रहा। अचानक एक दिन गेट पर कुछ परिचित सी खटकन सुनाई दी। झांक कर देखा तो उसी सब्जी वाली की प्रतिछाया नजर आई। चौकीदार से अम्माजी के बारे में पूछ रही थी। मैं उसके पास गयी पर उसको पहचान ना सकी। उम्र के दस पन्द्रह वर्ष और जुड़ गए हों जैसे। न माथे पर बिंदी न सिन्दूर और ना ही कानों में चांद बाली। उसकी दशा से किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी । वो वहीं गेट पर बैठ गई। पानी देने पर बार-बार आशीष देती रही। मेरे चेहरे पर तैरते प्रश्न को वह समझ रही थी।थोड़ा सहज होकर उसने बताना शुरू किया कि कैसे उसके कुटुंब के किसी लड़के ने उसकी बेटी को अपना शिकार बनाया। उसका पति इस हादसे को सहन नहीं कर पाया और स्वर्ग सिधार गया। बेटी को बचा तो लिया उसने पर उसकी सारी पूंजी के साथ-साथ उसकी मुस्कान भी नीलाम हो गई । पता चला कि वह अकेली अपने पूरे कुटुंब से मोर्चा ले रही है। अपनी बेटी के लिए रोज कचहरी पुलिस के चक्कर लगाते लगाते उसका जीवन बीत रहा है। पर इन सब से उसके जज्बे में कोई कमी नहीं नजर आई। मेरा हृदय उसके प्रति सम्मान से भर गया। हर तरह से वंचित होकर भी उसकी आत्मशक्ति अद्भुत थी। उसके चेहरे पर जीवट की चमक ऐसी थी जिस पर कितनी ही चांद-बालियां कुर्बान हो जाएं।
#जयन्ती
#jayakikalamse
#yqdidi 
#yqhindi
उसकी चांद-बाली (लघु कथा)

(रचना अनुशीर्षक में पढ़ें) उसकी चांद बाली (लघुकथा)
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वह शायद राजस्थान से थी। बातचीत से तो कुछ ऐसा ही लगता था। अक्सर सब्जी की टोकरी लेकर आ जाती थी मेरे मोहल्ले में । मेरी सासू मां को उसकी लाइ सब्जियां बहुत अच्छी लगती थी। ज्यादा भाव ताव भी नहीं करती थी। अम्मा जो भी दे दें उस पर राज़ी रहती थी। बदले में अम्मा उसे कुछ न कुछ अतिरिक्त देती रहती थी। कभी पुरानी धोती कभी बच्चों के लिए कुछ खाने को कभी और भी किसी तरह की जरूरत का सामान है,जो भी वो अम्मा से मांगे। दोनों में बड़ी मीठी से मित्रता और स्नेह बन गया था।मेरी बेटी उस समय छः सात वर्ष की थी। एक दिन उसने अम्मा से बिटिया के कपड़े मांगे। अम्मा ने बड़ी खुशी खुशी कुछ पुराने फ्रॉक  लेकर रख लिए। धीरे-धीरे दो हफ्ते गुजर गए पर वो आई नहीं। अम्मा उसका कोई ठिकाना नहीं जानती थी ना ही उसका नाम जानती थी।उसे लेकर थोड़ी सी सशंकित जरूर हो गई। थोड़ा और वक्त बीता और उसकी स्मृतियां धुंधली सी होने लगी।बस याद रह गई उसके कानों में डोलती वह चांद बाली। चांदी की थी पर जब भी वह बात करती तो उसका एक हाथ चांद बाली को टटोलता सा रहता। जैसे आश्वस्त होना चाहती हो। एक दिन हम ने पूछ भी लिया कि क्या उसे यह चांद बाली बहुत प्रिय है? इसमें कोई खास बात है? इतराते हुए बोली कि उसने खुद खरीदी है; अपनी कमाई से। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक देखने लायक थी।इस बात को चार पांच वर्ष बीत गए। इस बीच माता जी का देहांत हो गया और हम अपने अपने जीवन में इस कदर उलझे रहे कि उस सब्जीवाली का ख्याल जाता रहा। अचानक एक दिन गेट पर कुछ परिचित सी खटकन सुनाई दी। झांक कर देखा तो उसी सब्जी वाली की प्रतिछाया नजर आई। चौकीदार से अम्माजी के बारे में पूछ रही थी। मैं उसके पास गयी पर उसको पहचान ना सकी। उम्र के दस पन्द्रह वर्ष और जुड़ गए हों जैसे। न माथे पर बिंदी न सिन्दूर और ना ही कानों में चांद बाली। उसकी दशा से किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी । वो वहीं गेट पर बैठ गई। पानी देने पर बार-बार आशीष देती रही। मेरे चेहरे पर तैरते प्रश्न को वह समझ रही थी।थोड़ा सहज होकर उसने बताना शुरू किया कि कैसे उसके कुटुंब के किसी लड़के ने उसकी बेटी को अपना शिकार बनाया। उसका पति इस हादसे को सहन नहीं कर पाया और स्वर्ग सिधार गया। बेटी को बचा तो लिया उसने पर उसकी सारी पूंजी के साथ-साथ उसकी मुस्कान भी नीलाम हो गई । पता चला कि वह अकेली अपने पूरे कुटुंब से मोर्चा ले रही है। अपनी बेटी के लिए रोज कचहरी पुलिस के चक्कर लगाते लगाते उसका जीवन बीत रहा है। पर इन सब से उसके जज्बे में कोई कमी नहीं नजर आई। मेरा हृदय उसके प्रति सम्मान से भर गया। हर तरह से वंचित होकर भी उसकी आत्मशक्ति अद्भुत थी। उसके चेहरे पर जीवट की चमक ऐसी थी जिस पर कितनी ही चांद-बालियां कुर्बान हो जाएं।
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