आईं तो थीं सपनों से भरा बैग लिए, ख्वाहिशे संजोए नए शहर, सोचा तो था होगा सुहाना ये सफर,नहीं पता था यादों में भर आएगा जहन! थी में उस दिन ख़ुशी में चूर, नहीं पता था हो रहे थे अपने दूर! आ गई में तो शहर, अकेला रह गया मेरा गांव! रह गई मेरी मां अकेले,पापा को रख रही मेरी यादें घेरे! भाई बहनों की मुस्कान ला गई चुरा के, दादा दादी की छड़ी हो गई उनसे दूर! याद तब भी बहुत आती थीं ,अब भी बहुत आती हैं, आपकी ख्वाहिशों को भी तो करना हैं मशहूर! # दिव्या भंडारी missing my family