Story of Sanjay Sinha
स्कूल में मास्टर साहब मुझे पढ़ाते थे कि सूरज की किरणें जो धरती पर पहुंचती हैं वो आठ मिनट पुरानी होती हैं। ऐसी बातों पर मुझे हैरान होना ही होता था।
“आठ मिनट पुरानी? मतलब सूरज की जिस पहली किरण को हम यहां सुबह-सुबह देखते हैं, महसूस करते हैं, वो पहले घटी हुई घटना है?”
“हां, पर तुम इतना चौंक क्यो रहे हो, संजय सिन्हा?”“सर, ये तो बहुत ही हैरान करने वाली जानकारी है। सूरज का अतीत हमारा वर्तमान है।”“बिल्कुल सही। इसे समय कहते हैं।”
संजय सिन्हा थोड़ा समझते, थोड़ा उलझते। मैं अपने मन में प्रश्नों का पुलिंदा बना कर स्कूल से घर लौटता और आते ही मां के सामने सवालों के उस पुलिंदे को खोल देता। “मां, मास्टर साहब कह रहे थे कि सूरज की पहली किरण हम तक पहुंचती है, वो आठ मिनट पुरानी होती है।”
“मास्टर साहब बिल्कुल सही पढ़ा रहे थे बेटा। ये तो सूरज है, जो पृथ्वी के बहुत पास है। ब्रह्मांड में लाखों ऐसे सितारे हैं, जिन्हें तुम रात में टिमटिमाते हुए देखते हो, मुमकिन है कि उन में से ढेरों सितारे उल्का पिंड बन कर सैकड़ों हज़ारों साल पहले खत्म हो चुके हों।”
“पर मां, जो है ही नहीं, वो नज़र कैसे आता है?”मां भी मास्टर साहब की तरह कहती, "इसी को समय कहते हैं।" “ओह मां, समय क्या है?”मेरे प्यारे संजय बेटा, समय दूरी नापने की एक इकाई है। जैसे सूरज से पृथ्वी की दूरी प्रकाश वर्ष में नापते हैं। मतलब सूरज की किरण जो आठ मिनट में धरती तक पहुंचती है, उससे सूरज की दूरी नापते हैं। ऐसे ही हम सभी ग्रहों की दूरी आपस में नाप पाते हैं।
“पर मां, आप कह रही हैं कि हज़ारों टिमटिमाते तारे जिन्हें हम रात में देखते हैं, वो असल में उस रात की टिमटिमाहट नहीं होती?” #News