मेरे क़हक़हों की तह में उतरकर कभी तो देख। जो टूटता है रोज़ वो पत्थर कभी तो देख।। दिल में छुपा के रखी है कोई पुरानी बात, कहने को नहीं लफ़्ज़ मयस्सर कभी तो देख।। मंज़िल की जुस्तजू में उड़े आसमां में हम, मंज़िल तो ख़ाक में है उतरकर कभी तो देख।। यूं ही नहीं बन जाता है क़तरा कोई दरिया, इक प्यास का सहरा है समंदर कभी तो देख।। ये तवाफ़-ए-इश्क़-ओ-तरब में क्या मिला मुझे, मेरे दश्त-ए-दिल में आ के ठहरकर कभी तो देख।। इतना भी बेपरवाह और पत्थर नहीं "अलीम", तू उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाकर कभी तो देख।। #yqaliem #yqbhaijan #qahqahon #patthar #manzil #samandar तवाफ़-ए-इश्क़-ओ-तरब - moving around love and joy दश्त-ए-दिल - desert of heart मयस्सर। - available