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नाव छीन कर ना बाँधो दोस्तों बाँधो न नाव इस गांव क

नाव छीन कर ना बाँधो दोस्तों 
बाँधो न नाव इस गांव की है 

बाँधो न नाव इस ठाँव, 
पूछेगा सारा गाँव,दोस्तो।

यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धुँसकर।

आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव दोस्तों। 

वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,

सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव, दोस्तों। 

ना बाँधो इस नाव को दोस्तों  
ये नाव बचपन की निशानी है। 

माना कि ये कागज की है, 
फिर भी इसमें मेरी कहानी है दोस्तों। 

ना जाने पाओगे तुम, 
ये खो गई तो मेरी आँखों का दरिया, 

ना कोई रोक पायेगा ये शौक था कभी, 
आज मेरी परछाई है। 

ना बाँधो इस नाव को ,
तुम मेरे से छीन कर ये मेरी पहली पहचान है। 

माना बचपन की यादें हैं, 
पर अब ये मेरी पुरानी कहानी है। 
मेरे से छिन कर ना बाँधो इसे, दोस्तों

©Anju
  कागज की नाव
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Anju

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कागज की नाव #Quotes

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