में बहुत परेशान हूँ अपनो से हैरान हूं वो बड़ा सताते है वो बड़ा रुलाते है में बड़ा परेशान हूं उनसे अनजान हूं अपनो का रखता, में बड़ा ध्यान हूं अपने कत्ल करते, अपने निर्बल करते, फिऱ भी में साखी, उन्हें मानता इंसान हूं में भी कितना पगला हूं रेत पे बना रहा मकान हूं में बड़ा परेशान हूं अपनो से हैरान हूं रोशनी का अंधेरा हूं तम का बांधे सहरा हूं बुझे हुए दीपो मे,में जलता दीप नादान हूं वो तोड़ते है,शीशा, दर्द देते है,बीसा, फिऱ भी जीना तो है गम को पीना तो है क्योंकि में एक पत्थर, कोहिनूर का दान हूँ में बड़ा परेशान हूं अपनो से हैरान हूं दिल से विजय अपनो से परेशान