सर पर अपने तेज समेटे पैरों में विस्तार लिए पग-पग बढ़ते जाता हुँ मैं अपनी माँ का प्यार लिए नहीं जीत का जश्न मनाता,हार से मैं भयभीत नहीं कर्मक्षेत्र में मनोयोग से बढ़ता हूँ अधिकार लिए प्रियंका राय ओमनंदिनी मेरा अन्तस्