किस बेवफाई ,रुसवाई की सजा , तुम्हें तंग कर रही है ? आ जाओ , तुम्हें लगा लूं गले , दर्द की राहत,तुम्हें पूछ रही है , कमबख्त , मुकम्मल 'जहां' सबको , कहां मिलता है ? रात को उजाला करने वाला दीया .. "सूरज" के आगे कौन पूछता है ? "भंवर" में फंसी हमारी जिंदगी , "भाग्य" ही जाने कैसे निकलेगी ? "दलदल" से 'तपती' जिंदगी , चारों तरफ दिखती है 'बेखुदी' कौन नहीं रखता ? अपने 'कर्मों का लेखा जोखा , फिर कितनों को ? 'अपना' चाहा मुकाम मिलता ? अरे ! यहां तो 'नसीबो' का खेल है ,यारों ! ''प्रारब्ध" के बोनस से 'अदना' भी *मुकाम* हासिल करता है , यारों ! फिर किस बात की 'चिंता' ? तुम्हें तंग कर रही है !!! आओ.. तुम्हें 'लेटा' लूं 'मैं' अपनी आंखों की पलकों में , "शकून" का पल तुम्हें "मैं" दूंगा , ओ मेरे 'हमदम' मेरे दोस्त l ✍️ संजय पांडेय रामकोला , कुशीनगर 9935244255 ©Sanjay Kumar Bhardwaj 8 line poet #8LinePoet