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ज़िन्दगी से ख्वाहिश..... फिर कहीं दूर जाना चाहता

ज़िन्दगी से ख्वाहिश.....

फिर कहीं दूर जाना चाहता हूं,
फिर कुछ रोज़ अपने ज़िम्मेदारी से थोड़ा अलग होना चाहता हूं...

सारे रिश्ते तोड़, कुछ शांत होना चाहता हूं,
एक अंधेरी रात का टूटता तारा होना चाहता हूं।

मोम की तरह निस्वार्थ, इत्र सा सुगंधित होना चाहता हूं,
मृत की तरह खुद से निर्जन होना चाहता हूं....

फिर कहीं दूर जाना चाहता हूं,
दुनिया के इस भंवर से आजाद होना चाहता हूं।।

 #ज़िन्दगी_से_ख्वाहिश....
A translation of a poem "mon jai" which was written last year, the same date...
ज़िन्दगी से ख्वाहिश.....

फिर कहीं दूर जाना चाहता हूं,
फिर कुछ रोज़ अपने ज़िम्मेदारी से थोड़ा अलग होना चाहता हूं...

सारे रिश्ते तोड़, कुछ शांत होना चाहता हूं,
एक अंधेरी रात का टूटता तारा होना चाहता हूं।

मोम की तरह निस्वार्थ, इत्र सा सुगंधित होना चाहता हूं,
मृत की तरह खुद से निर्जन होना चाहता हूं....

फिर कहीं दूर जाना चाहता हूं,
दुनिया के इस भंवर से आजाद होना चाहता हूं।।

 #ज़िन्दगी_से_ख्वाहिश....
A translation of a poem "mon jai" which was written last year, the same date...