जेब में है नहीं एक भी धेला, चले थे मियां मिट्ठू घूमने को मेला। अपने गुच्छे से जो टूट जाता एक केला, कहने लगता जमाना उसे अकेला केला।। जीवन है चार ही दिनों का खेला, मरणोपरांत नहीं देखा किसी ने कोई रेला। देखो तो ये है मेरा छैल छबीला, पर सचमुच न जानूँ रहता कौन कबीला।। आला, अउ रहला, अउ गेला, पूछो तो कोन गुरु कोन चेला।। क्यों झेला, क्या ठेला, कैसा ढेला.,., इंतजार कर रहे आएगी कब वह वेला खुशबू फैलाएगी जब खिलकर यह बेला।। वर्णमाला के अक्षरों में एला लगाया। कुछ समय लगाया और ये बना डाला।