जब भी उसके शहर से गुजरता हूँ , मैं अपनी हद से बड़ कर , कुछ कर गुजरता हूँ ............ लगता है जैसे मैं कुछ भी नहीं, मेरा वजूद मुझको ही अखरता है...... उसको य़ाद करके , एक नया जोश-ए -जनून दिल में भरके , कुछ नया करने की ज़िद पकड़ता हूं, जब भी मैं उसके शहर से गुजरता हूँ ......... Josh-e-junoon