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जब भी उसके शहर से गुजरता हूँ , मैं अपनी हद से बड़

जब भी  उसके शहर से गुजरता हूँ ,
मैं अपनी हद से बड़ कर ,
कुछ कर गुजरता हूँ ............

लगता है जैसे मैं कुछ भी नहीं,
मेरा वजूद  मुझको ही अखरता है......

उसको य़ाद करके ,
एक नया जोश-ए -जनून  दिल में  भरके ,
कुछ नया करने की ज़िद पकड़ता हूं, 
जब भी मैं उसके शहर से गुजरता हूँ .........
   Josh-e-junoon
जब भी  उसके शहर से गुजरता हूँ ,
मैं अपनी हद से बड़ कर ,
कुछ कर गुजरता हूँ ............

लगता है जैसे मैं कुछ भी नहीं,
मेरा वजूद  मुझको ही अखरता है......

उसको य़ाद करके ,
एक नया जोश-ए -जनून  दिल में  भरके ,
कुछ नया करने की ज़िद पकड़ता हूं, 
जब भी मैं उसके शहर से गुजरता हूँ .........
   Josh-e-junoon