खोने का डर किसे अब यहां है सूनी है राहें और यादों का बस धुआं है चेहरे की संजीदगी बयां कर रही है हाथों की लकीरें फिर कर्ज़दार हो गई हैं गुज़रता है दिन भी अब बेवजह ही रातें है गुमसुम और धुंधली है सुबह भी अजीब है रिश्ता तेरे-मेरे दरम्यां अब नफ़रत से भी मोहब्बत बेशुमार हो गई है... 🎀 Challenge-220 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 6 पंक्तियों में अपनी कविता लिखिए। (ध्यान रहे कविता लिखनी है)